निस्वार्थ की गई दोस्ती
में हक मांगे नही जाते
यदि निभा रहा कोई एक
पूरी शिद्दत से अपना फर्ज
तो उसकी खशी को अपने स्वार्थ से
छुपा नही सकते
ये मसला है चंद लमहा का
इसे सालो तक खींचा नही करते
यदि रखता है मायने वो साथ
तो अलग होने के बहाने नही सोचते
बस बांट देते है खुशियां खुद को भूलकर भी
पर सच्चे दोस्तो का साथ कभी छोड़ा नही करते ।
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