न मेरी आँखे झुटी
न मेरी मुस्कान
न मेरी बेचैनी झुटी
न मेरी थकान।
ना झरनों की तरह बह पाता हूँ
ना बर्फ की तरह जम पाता हूँ।
बस कभी ओस की जैसे नरम तो
कभी पत्थर जैसे सख्त हो जाता हूँ
काश कि
मैं भी खिलखिलाकर हसूं
कभी बारिश की तरह बरसूं।
लोग मुझे क्या बनाना चाहे
क्यूं खुद के गुण मुझ में तलाश रहे
मैं वो अवश्य नहीं मेरा यथार्थ बस् मैं हूँ
क्योकि मेरे जीवन मे रहस्य नहीं।।
©Drx Kumar pankaj
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