जी रहे हैं इसी आस में कि नजर अब कोई आस न आए, राम क | हिंदी शायरी

"जी रहे हैं इसी आस में कि नजर अब कोई आस न आए, राम करे अपने हिस्से में फिर से कोई वनवास न आये।"

 जी रहे हैं इसी आस में कि नजर अब कोई आस न आए,
राम करे अपने हिस्से में फिर से कोई वनवास न आये।

जी रहे हैं इसी आस में कि नजर अब कोई आस न आए, राम करे अपने हिस्से में फिर से कोई वनवास न आये।

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