ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर | हिंदी शायरी

"ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। ज़िन्दगी ये हसीन भी होती । पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।। जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।। खोजते तुम जिसे हमीं में हो । उसका होता नहीं बसर मुझमें ।। व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा । वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।। दिल चुराया अगर तुम्हारा है । कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।। भूलकर भी न दूर जाता है । वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।। ०९/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 ग़ज़ल
तेरी चाहत का है असर मुझमें ।
एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।

ज़िन्दगी ये हसीन भी होती ।
पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।।

जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको
उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।।

खोजते तुम जिसे हमीं में हो ।
उसका होता नहीं बसर मुझमें ।।

व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा ।
वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।।

दिल चुराया अगर तुम्हारा है ।
कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।।

भूलकर भी न दूर जाता है ।
वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।।
०९/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। ज़िन्दगी ये हसीन भी होती । पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।। जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।। खोजते तुम जिसे हमीं में हो । उसका होता नहीं बसर मुझमें ।। व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा । वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।। दिल चुराया अगर तुम्हारा है । कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।। भूलकर भी न दूर जाता है । वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।। ०९/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल


तेरी चाहत का है असर मुझमें ।

एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।

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