नज़्म - "जुदाई" जिस तन गुज़रे सो ही जाने क्या बीते | हिंदी कवि

नज़्म - "जुदाई"

जिस तन गुज़रे
सो ही जाने
क्या बीते
जब यार जुदा होवे
उसकी ख़ाक को
अब ठिकाना कौनसा?

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