*जीव-भ्रमण!*
जब से होता अवतरण
निरंतर रहता रण
भावों का मिश्रण
विरल अतिक्रमण
कुण्ठित कण कण
रतिकाल रमण
निरावरण
जुड़ने के क्षण
भ्रमित वरण
प्राणपण प्रण
प्रेम का प्रकटीकरण
स्मृति-क्षरण
जीवित शोषण
नहीं कोई किरण
अवांछित निराकरण
व्यथित तृण तृण
रहता आमरण
धैर्य कर धारण
प्रतीक्षित उत्तरायण
ब्रह्म की शरण
अंतिम गंतव्य मरण
शांति संग तरण
होता शुद्धिकरण...!!!
©Ram Singh
# Jiv Bharaman #