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तुम भला अब क्या करोगे ,प्रीत को लज्जित करोगे
करके शुभचिंतक निमंत्रित, मंडली चर्चा करोगे
आचरण में खोंट कहना नियति में दोष कहना
थी त्रुटि केवल हमारी बोल कर आंसू बहाना
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
माथे पर सिलवट पड़ी है चूल्हे पर विरह जली है
शब्द पकते आंच पर हैं भाव टूटे कांच पर हैं
बेल घावों की हरी है आंसुओं से सिंच रही है
प्रेयसी को पत्र देना हो तो मुझसे ही लिखाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
वासना को नष्ट करके मंदिरों में पांव पड़के
मांथे पर टीका लगाकर काशी या नैमिष में जाकर
विप्र को गौ दान करके गंगा में स्नान करके
भागवत, मानस श्रवण कर अपने पापों को मिटाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
अब बिछड़ने की घड़ी है मौत सिरहाने खड़ी है
तिमिर ने देखा वो सबकुछ कौमुदी जो कर रही है
झीसियां परिजन की होंगी काल अभिवादन की होंगी
तुम भी दो आंसू बहाकर गंगा मईया में बहाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
©#काव्यार्पण
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना- प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
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