मैं बहती नदी सी,तू समुंदर का किनारा
मेरा कोई छोर नहीं,तेरा मन ठहरा आवारा
जब मन हुआ बावरा, तेरी ओर बहती चली आई
मुझे भी कर खुद में शामिल, मै तेरी ही तो हूं रुबाई
मुझे बांध रही थी , वरफ की रेशमी काया
निर्झर था मन, बह चला बन के तेरा साया
मुझे पत्थर,तो कभी घाटियों के छांव ने रोका
कभी कलियों,कभी फूलों के गांव ने रोका
धड़कन हूं मै तेरी, हूं मै तेरी अगड़ाई
रुकती भला कैसे ,तेरे रोम रोम में हूं समाई
कर सोलह श्रृंगार, भर सितारों का आंचल
अंजुरी में भर अोस की बूंदे, पांव में डाली तेरे नाम की पायल
सूरज की किरणें बनी मेरी बिंदियां,चंदा की शीतल ले मेरी बलैयां
लहर की चूड़ियों के खनक संग,पहन आई मै हर गहना
कि अब ले चल मुझे, तेरे संग ही है मुझे रहना
नदी सा मन
#withyou