इस गैरों की महफिल में कौन अपना है यहा किसको किसकी | हिंदी शायरी

"इस गैरों की महफिल में कौन अपना है यहा किसको किसकी चाहत में तड़पना है .. सबको तलब लगी है प्यास बुझाने की किसकी को यह जिंदा इंसान नही देखना है। अमित माहला ©Dil_k_jajbat05(Amit Mahla)"

 इस गैरों की महफिल में कौन अपना है
यहा किसको किसकी चाहत में तड़पना है ..
सबको तलब लगी है प्यास बुझाने की
किसकी को यह जिंदा इंसान नही देखना है।
अमित माहला

©Dil_k_jajbat05(Amit Mahla)

इस गैरों की महफिल में कौन अपना है यहा किसको किसकी चाहत में तड़पना है .. सबको तलब लगी है प्यास बुझाने की किसकी को यह जिंदा इंसान नही देखना है। अमित माहला ©Dil_k_jajbat05(Amit Mahla)

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