अब तो सूरज भी स्याह लिए डूबता है सुबह की किरणे भी | हिंदी कविता

"अब तो सूरज भी स्याह लिए डूबता है सुबह की किरणे भी शर्मशार जो है हलक में रूह लिए बेटियां निकलती है नया भारत मे चलन बलत्कार जो है ।। बदन को नोचने खसोटने से जी ना भरे जला के भस्म करने भेड़िया तैयार जो है कौन सी दुविधा अटकी है देश मे बोलो हमारे खून में रहता एक किरदार जो है ।"

 अब तो सूरज भी स्याह लिए डूबता है 
सुबह की किरणे भी शर्मशार जो है  
हलक में रूह लिए बेटियां निकलती है
नया भारत मे चलन बलत्कार जो है ।।

बदन को नोचने खसोटने से जी ना भरे
जला के भस्म करने भेड़िया तैयार जो है
कौन सी दुविधा अटकी है देश मे बोलो
हमारे खून में  रहता एक किरदार जो है ।

अब तो सूरज भी स्याह लिए डूबता है सुबह की किरणे भी शर्मशार जो है हलक में रूह लिए बेटियां निकलती है नया भारत मे चलन बलत्कार जो है ।। बदन को नोचने खसोटने से जी ना भरे जला के भस्म करने भेड़िया तैयार जो है कौन सी दुविधा अटकी है देश मे बोलो हमारे खून में रहता एक किरदार जो है ।

#नया_भारत ,
#Like_Priyanka,Nirbhaya, ashima so
many to happen in future if the Govt.
doesn't implement rigours punishment.
only one punishment : shoot under open sky publicly because hidden rapists shelter is society and so they must watch the consequences .

But unfortunately , Govt will not do this
because "खून में रहता एक किरदार जो है"।

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