White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के म | हिंदी कविता

"White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के महलों पर।। बनना है तो पारस पत्थर बन, लोहे को स्वर्ण बना डालों।। या कट - कट कर कोहिनूर बन, दुनियां को चमक दिखा डालो।। या बनना है तो गांधी बन, बिन सुख सुविधा के आधी बन। या छोड़ महल के वैभव को, गौतम बुद्ध जैसा ज्ञानी बन।। ©डॉ.अजय कुमार मिश्र"

 White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के महलों पर।।
बनना है तो पारस पत्थर बन, लोहे को स्वर्ण बना डालों।।
या कट - कट कर कोहिनूर बन,
दुनियां को चमक दिखा डालो।।
या बनना है तो गांधी बन, बिन सुख सुविधा के आधी बन।
या छोड़ महल के वैभव को,  गौतम बुद्ध जैसा ज्ञानी बन।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र

White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के महलों पर।। बनना है तो पारस पत्थर बन, लोहे को स्वर्ण बना डालों।। या कट - कट कर कोहिनूर बन, दुनियां को चमक दिखा डालो।। या बनना है तो गांधी बन, बिन सुख सुविधा के आधी बन। या छोड़ महल के वैभव को, गौतम बुद्ध जैसा ज्ञानी बन।। ©डॉ.अजय कुमार मिश्र

पत्थर

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