कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान | हिंदी कविता

"कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।। मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा । करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१ मतलब से अब फोन हो , मतलब से हो बात । मतलब जाते देख लो, बदलें हैं जज्बात ।। बदलें हैं जज्बात , यही इंसानी फितरत । फिर भी कहतें लोग , तुम्हीं से है बस चाहत ।। उन्हें बताये कौन , यही कहते हैं अब सब । आती है तब याद , पड़े जो कोई मतलब ।।२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 कुण्डलिया :-
आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।।
मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा ।
करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१

मतलब से अब फोन हो , मतलब से हो बात ।
मतलब जाते देख लो, बदलें हैं जज्बात ।।
बदलें हैं जज्बात , यही इंसानी फितरत ।
फिर भी कहतें लोग , तुम्हीं से है बस चाहत ।।
उन्हें बताये कौन , यही कहते हैं अब सब ।
आती है तब याद , पड़े जो कोई मतलब ।।२

   -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।। मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा । करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१ मतलब से अब फोन हो , मतलब से हो बात । मतलब जाते देख लो, बदलें हैं जज्बात ।। बदलें हैं जज्बात , यही इंसानी फितरत । फिर भी कहतें लोग , तुम्हीं से है बस चाहत ।। उन्हें बताये कौन , यही कहते हैं अब सब । आती है तब याद , पड़े जो कोई मतलब ।।२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-
आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।।
मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा ।
करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१

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