सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आग | हिंदी कविता

"सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ । हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह- रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ ।
निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ ।
हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह-
रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ । हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह- रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ ।
निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ ।
हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह-
रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

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