ढूंढा तुझे हिमालय में और कई चट्टानों में नील गगन आ | हिंदी कविता

"ढूंढा तुझे हिमालय में और कई चट्टानों में नील गगन आकाश में और धरती पाताल में नदीयों को भी छान लिया सूरज से भी घाम लिया नक्षत्रों को भी परखा हैं ग्रह मंडलों में घुम लिया गीता ,कुरान,बाईबल सारी अपने अंदर घोली हैं। गुरु वाणी की हर एक वाणी भक्तजनों से बोली हैं। होली दीवाली ईद में मैनैं तोहफ़े बटवा देता हूं। चंद भीखारी भीखमंगों की झोलीयां भर देता हूं। खुशहाली के लिए ही मैने मात पिता को त्यागा हैं। पत्नी जी के हुकुम से उनको वृद्धा आश्रम डाला हैं। इतना करने से भी मुझको न शांति है न शुकुन है। रात कि नींद नहीं है। न भुख प्यास न चैन है। दीपिका बेलवाल उफ बिट्टू ©DEEPIKA BELWAL"

 ढूंढा तुझे हिमालय में और कई चट्टानों में
नील गगन आकाश में और धरती पाताल में

नदीयों को भी  छान लिया सूरज से भी घाम लिया 
नक्षत्रों को भी परखा हैं  ग्रह मंडलों में घुम लिया

गीता ,कुरान,बाईबल  सारी अपने अंदर घोली हैं।
गुरु वाणी की हर एक वाणी भक्तजनों से बोली हैं।

होली दीवाली ईद में मैनैं तोहफ़े बटवा देता हूं।
चंद भीखारी भीखमंगों की झोलीयां भर देता हूं।

खुशहाली के लिए ही मैने मात पिता को त्यागा हैं।
पत्नी जी के हुकुम से उनको वृद्धा आश्रम डाला हैं।


इतना करने से भी मुझको न शांति है न शुकुन है।
रात कि नींद नहीं है। न भुख प्यास न चैन है।



   दीपिका बेलवाल उफ बिट्टू

©DEEPIKA BELWAL

ढूंढा तुझे हिमालय में और कई चट्टानों में नील गगन आकाश में और धरती पाताल में नदीयों को भी छान लिया सूरज से भी घाम लिया नक्षत्रों को भी परखा हैं ग्रह मंडलों में घुम लिया गीता ,कुरान,बाईबल सारी अपने अंदर घोली हैं। गुरु वाणी की हर एक वाणी भक्तजनों से बोली हैं। होली दीवाली ईद में मैनैं तोहफ़े बटवा देता हूं। चंद भीखारी भीखमंगों की झोलीयां भर देता हूं। खुशहाली के लिए ही मैने मात पिता को त्यागा हैं। पत्नी जी के हुकुम से उनको वृद्धा आश्रम डाला हैं। इतना करने से भी मुझको न शांति है न शुकुन है। रात कि नींद नहीं है। न भुख प्यास न चैन है। दीपिका बेलवाल उफ बिट्टू ©DEEPIKA BELWAL

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