' तलाश '
ये लेखनी की बातें
वो ख्वाबों में मुलाकातें
सब तुमसे ही थीं
मगर तुमने
पहचाना ही नहीं।
मैं लिखता रहा तुम पढ़ते रहे
मैं कहता रहा तुम सुनते रहे
इतना पढ़कर-सुनकर भी
तुम पढ़-सुन न सके
सब तुम्हारे लिए ही था
मगर तुमने
अपना माना ही नहीं।
©Rishi Ranjan
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