दोहा :- हिंदू हिंसक हो गया , बतलाते हैं चोर । छवि | हिंदी कविता

"दोहा :- हिंदू हिंसक हो गया , बतलाते हैं चोर । छवि लिए महादेव की , करता है वह शोर ।। थाम कटोरा हाथ में , आते क्यों हो पास । इक हिंसक से आप अब , रखो न इतनी आस ।। इक हिंसक के सामने , जो फैलाते हाथ । हिंसक अब जाओ समझ , देना कभी न साथ ।। हिंदू हिंसक हो गया , रहना बचकर आप । उसके चलने की नही , आती है पद चाप ।। भोले जी तो शांत है, काली है विकराल । बचकर रहना इस धरा , तू नन्हा सा लाल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 दोहा :-

हिंदू हिंसक हो गया , बतलाते हैं चोर ।
छवि लिए महादेव की , करता है वह शोर ।।

थाम कटोरा हाथ में , आते क्यों हो पास ।
इक हिंसक से आप अब , रखो न इतनी आस ।।

इक हिंसक के सामने , जो फैलाते हाथ ।
हिंसक अब जाओ समझ , देना कभी न साथ ।।

हिंदू हिंसक हो गया , रहना बचकर आप ।
उसके चलने की नही , आती है पद चाप ।।

भोले जी तो शांत है, काली है विकराल ।
बचकर रहना इस धरा , तू नन्हा सा लाल ।।


महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- हिंदू हिंसक हो गया , बतलाते हैं चोर । छवि लिए महादेव की , करता है वह शोर ।। थाम कटोरा हाथ में , आते क्यों हो पास । इक हिंसक से आप अब , रखो न इतनी आस ।। इक हिंसक के सामने , जो फैलाते हाथ । हिंसक अब जाओ समझ , देना कभी न साथ ।। हिंदू हिंसक हो गया , रहना बचकर आप । उसके चलने की नही , आती है पद चाप ।। भोले जी तो शांत है, काली है विकराल । बचकर रहना इस धरा , तू नन्हा सा लाल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

हिंदू हिंसक हो गया , बतलाते हैं चोर ।

छवि लिए महादेव की , करता है वह शोर ।।


थाम कटोरा हाथ में , आते क्यों हो पास ।

इक हिंसक से आप अब , रखो न इतनी आस ।।

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