तुम्हारी आंखों के नूर से ही, मैं अपना काजल लगाती ह

"तुम्हारी आंखों के नूर से ही, मैं अपना काजल लगाती हूं ! तुम्हारे चेहरे की मुस्कान से, मै सुर्ख लबों की लाली बनाती हूं ! तुम्हारी शख्सियत के दर्पण में मैं खुद को निहारती हूं ! एक झलक जो तुम देखो मुझे, मैं अप्सरा-सी खूबसूरत हो जाती हूं ! इश्क मेरा तुमसे है और तुम्हीं पूछते हो, मैं किस से मोहब्बत करती हूं ? ममता गहलोत"

 तुम्हारी आंखों के नूर से ही,
मैं अपना काजल लगाती हूं !
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान से,
मै सुर्ख लबों की लाली बनाती हूं !
तुम्हारी शख्सियत के दर्पण में 
मैं खुद को निहारती हूं !
एक झलक जो तुम देखो मुझे,
मैं अप्सरा-सी खूबसूरत हो जाती हूं !
इश्क मेरा तुमसे है और तुम्हीं पूछते हो,
मैं किस से मोहब्बत करती हूं ?

ममता गहलोत

तुम्हारी आंखों के नूर से ही, मैं अपना काजल लगाती हूं ! तुम्हारे चेहरे की मुस्कान से, मै सुर्ख लबों की लाली बनाती हूं ! तुम्हारी शख्सियत के दर्पण में मैं खुद को निहारती हूं ! एक झलक जो तुम देखो मुझे, मैं अप्सरा-सी खूबसूरत हो जाती हूं ! इश्क मेरा तुमसे है और तुम्हीं पूछते हो, मैं किस से मोहब्बत करती हूं ? ममता गहलोत

इश्क मेरा तुमसे है और तुम्हीं पूछते हो,
मैं किस से मोहब्बत करती हूं ?

अब कैसे बताऊं कि,
तुम्हारी खुशबू से ही मैं महकती हूं !
तुम ही मेरे आफताब और मेहताब,
तुम्हारे लिए ही मै सजती सवरती हूं !
जो ना देखूं कभी तुम्हें तो

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