काग़ज़ और कलम का कुछ ऐसा रिश्ता है जब जब दोनों साथ

"काग़ज़ और कलम का कुछ ऐसा रिश्ता है जब जब दोनों साथ मिले, पयार के जज़्बात लिखे. शब्दों से हर बात सजे, हर शायर की पहचान बने, ना जाने कितनों की आवाज़ बने, हर महफ़िल की ये जान रहे, यूँ ही सदियों तक चलता दोनों का साथ रहे| Bareera Iram."

 काग़ज़ और कलम का कुछ ऐसा रिश्ता है
जब जब दोनों साथ मिले, पयार  के जज़्बात लिखे.
शब्दों से हर बात सजे, 
हर शायर की पहचान बने, 
ना जाने कितनों की आवाज़ बने, 
हर महफ़िल की ये जान रहे, 
यूँ ही सदियों तक चलता दोनों का साथ रहे|
Bareera Iram.

काग़ज़ और कलम का कुछ ऐसा रिश्ता है जब जब दोनों साथ मिले, पयार के जज़्बात लिखे. शब्दों से हर बात सजे, हर शायर की पहचान बने, ना जाने कितनों की आवाज़ बने, हर महफ़िल की ये जान रहे, यूँ ही सदियों तक चलता दोनों का साथ रहे| Bareera Iram.

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