ये कैसी फिज़ा है ज़हर सा घुला है इसमे यहा
कही नफरते तो कही दरिन्दगी फैली है यहा
ये कैसी गुंज है दर्द से चीखती आवाजो की यहा
ये कैसी दहशत है की हर आंख सहमी है यहा
शायद सबका पेट भरा है इसलिये ये हैवानियत है यहा
मज़हब बने थे इंसानियत को बचाने के लिये पर
अब इंसानियत को मारा जा रहा है धर्म बचाने के लिये
शायद ये सब कलयुग है और यही हकीकत है अब यहा
"ये कलयुग है"
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