घर से निकले थे जो घर के,
चिराग बनकर ।
आज खुद रह रहे हैं,
किराए के चार कमरों के अंदर ।
जब हर जिम्मेदारी का बोझ,
अपने कंधों पर उन्होंने उठाया था,
अपने कई सपनो का गला
उन्होने दबाया था।
इस फरेबी दुनिया के तानों से,
घर के बाहर जाना था।
कहा सोचा था फिर,
वापस आने का रास्ता
फिर कठिन था।
घर से निकले थे जो
कहकर !
जिम्मेदारी पापा अब हम
आपस में बांट लेंगे।
भूल गए थे देखना उन
नम आंखो में ,
जिसने पूछा था सवाल ?
बेटा कही तुम जाकर
वापसी का रास्ता तो ना
भूल बैठोगे?
©Ujjwal Kaintura
#GingerTea घर से निकले थे जो घर के,
चिराग बनकर ।
आज खुद रह रहे हैं,
किराए के चार कमरों के अंदर ।
जब हर जिम्मेदारी का बोझ,
अपने कंधों पर उन्होंने उठाया था,
अपने कई सपनो गला
उन्होने दबाया था।