ग़ज़ल
पहन कर सुर्ख जोड़े को कदम धीरे उठाता है ।
सिसकना ख़्वाब में जिसका मुझे अब तक सताता है ।।
कहानी और बदलेगी अभी तो साँस है चलती ।
बुझे वो प्यार के दीपक नहीं अब यूँ जलाता है ।।
बहारें पूँछ लेती हैं अभी भी नाम क्या उसका ।
मुहब्बत में तुम्हें दोजख यहाँ जो अब दिखाता है ।।
करो शिकवा गिला हमसे नही अब आप भी ज्यादा ।
तुम्हारी राह में वो गुल अकेला ही खिलाता है ।।
बचाकर हुस्न रक्खा है सुनो उसके लिए मैने ।
हमारे जो इशारे पे ये तारे तोड़ लाता है ।।
जताकर वो.वफ़ा हमसे हमारा आज तन माँगे ।
जो दुनिया से अलग खुद को मुझे अक्सर बताता है ।।
सभी आते प्रखर दौड़े मुहब्बत का दीया लेकर ।
मगर मैं राह तकती हूँ जो लेकर चाँद आता है ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल
पहन कर सुर्ख जोड़े को कदम धीरे उठाता है ।
सिसकना ख़्वाब में जिसका मुझे अब तक सताता है ।।
कहानी और बदलेगी अभी तो साँस है चलती ।
बुझे वो प्यार के दीपक नहीं अब यूँ जलाता है ।।
बहारें पूँछ लेती हैं अभी भी नाम क्या उसका ।