ग़ज़ल :-
यूँ न माँ बाप का दिल दुखा दीजिए ।
बृद्ध हैं तो उन्हें आसरा दीजिए ।।
थाम हाथों को जिनके हुए हो बड़े
शीश चरणों में उनके झुका दीजिए
जख़्म जितने सहे हैं तुम्हारे लिए
फूल दामन में उतने ख़िला दीजिए
बाप का फर्ज जो भूल पाये नही
मान सम्मान उनका बढ़ा दीजिए
हैं बहन बेटियाँ सबकी साझीं यहाँ
बात बेटों को इतनी बता दीजिए
घर में आई बहू है हमारे नई
आप नज़रे न उसको लगा दीजिए
इस जहाँ में पिता परमेश्वर ही यहाँ ।
जाके चरणों में सब कुछ लुटा दीजिए
मोल जिनका यहाँ पर चुका ना सको
उनकी सेवा में जीवन बिता दीजिए
साथ लाये थे क्या जो हुआ दुख तुम्हें
बात इतनी तो जग को बता दीजिए
हैं दुवाएँ प्रखर साथ माँ बाप की
आप राहों में रोड़े लगा दीजिए
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
यूँ न माँ बाप का दिल दुखा दीजिए ।
बृद्ध हैं तो उन्हें आसरा दीजिए ।।
थाम हाथों को जिनके हुए हो बड़े
शीश चरणों में उनके झुका दीजिए
जख़्म जितने सहे हैं तुम्हारे लिए
फूल दामन में उतने ख़िला दीजिए
बाप का फर्ज जो भूल पाये नही