संवेदना हृदय की उसकी अपनी सारी मर चुकी है
ना जाने कितनी दफा वो मज़बूरी में बिक चुकी है
कभी अपने बच्चे की भुख ने उसे बिकवाया , तो
कभी खोटे नियति की मार ने उससे ये करवाया
जिसकी चाहत ने उससे उसका घर है छुड़वाया
उसी ने आज उसे बाज़ार में नीलाम है करवाया
लेकिन अब अपनी नियति पे ना उसे रोना आता है
और ना ही उसके लबों पर कोई मुस्कान आती हैं
जो हो गया था और जो हो रहा है उसके साथ
मजबूरी बन गई उसकी जो वो अब एक मां भी है
निकलना चाह कर हुए भी ना निकल पाती हैं
वो अब एक ऐसे ही जगह की पिंजरे में कैद है
कोई तगमा तो नहीं है उन सब स्त्रीयों के लिए
लेकिन, थोड़ी सहानुभूति इतना तो हो ज़रूरी
चाहें मान सम्मान ना देना हो तो ना दीजियेगा
लेकिन उनका कभी अपमान भी ना कीजियेगा।
©Sadhna Sarkar
#ankahe_alfaaz
वक्त के हाथों मजबूर हैं
सहानुभूति ज़रूरी है।