सीरिया और इराक को तबाह होते सबने देखा फिर अमेरिका देखता रहा और तालिबानियों ने अफगान फतह कर लिया लोग हवा मे उड़ते जहाजो से लटकते रहे मगर अमेरिका का दिल नही पसीजा
यूक्रेन सोच रहा था रूस जब भी हमला करेगा अमेरिका और नाटो उसे बचाने जरूर आएंगे मगर मुकाबला किसी ऐरे गैर से नही रूस से होना है जिसने अमेरिका से हमेशा आँखों मे आँख डालकर बात की है
भारत-पाक युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब अमेरिका पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ गया था। अमेरिका ने जापान के करीब तैनात अपने नौसेना के सातवें बेड़े को पाकिस्तान की मदद करने के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिया अमेरिकी नौसेना को बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ता देख कर रूस ने भारत की मदद के लिए अपनी परमाणु क्षमता से लैस सबमरीन और विध्वंसक जहाजों को प्रशांत महासागर से हिंद महासागर की ओर भेज दिया।रूस की नौसेना ने सातवें बेड़े का पीछा तब तक नहीं छोड़ा, जब तक वह वापस नहीं लौट गया।
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम का प्रस्ताव लाकर पाकिस्तान की मदद करने की कोशिश की। रूस ने इस प्रस्ताव पर वीटो करके भारत की मदद की थी दूसरी तरफ यूक्रेन और पाकिस्तान के रक्षा संबंध बेहद मजबूत हैं। यूक्रेन ने ही पाकिस्तान को T-80D टैंक सप्लाई किए जिसके जवाब में
रूस ने भारत T-90 टैंक दिये थे 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन शक्ति’ के नाम से पाँच परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। उस दौरान यूक्रेन ने भारत के परमाणु परीक्षणों की कड़ी निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1172 के पक्ष में मतदान किया था इसलिए भारत रूस के खिलाफ जाकर आफत मोल नही ले सकता और यूक्रेन जिस नाटो और अमेरिका के
दम पर फूल रहा था वो मुहँ में दही जमाकर बोल रहा है हम रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाएंगे मगर यूक्रेन की मदद के लिए सेना भेजने में असमर्थ है इस कहानी का सारांश यही है कि जंग खुद के दम पर लड़ी जाती है दुसरो के कंधों पर केवल जनाजे निकलते है । इसलिए दुश्मन कैसा भी हो मगर दोस्त ऐसा बनाओ जो संकट के समय कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे।
-तरुण योगी
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