मैं प्राय: खाली हाथ आया हूँ, कभी ख्वाइश नहीं होती | हिंदी शायरी Video

"मैं प्राय: खाली हाथ आया हूँ, कभी ख्वाइश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते। भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आया हूं, कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते। 2 लाइन शायरी - मैं खाली हाथ आया तलब करें तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें दे दूं, मगर ये लोग मेरी आंखों के ख्वाब मांगते हैं। तालाब करें तो मैं अपनी आंखें भी उन्हें दे दू, मगर ये लोग मेरी आंखों के ख्वाब मांगते हैं। विज्ञापन बेगुनाह कोई हरदम हर राज़ होते हैं, किसी के छुप जाते हैं, किसी के छप्पर हो जाते हैं। बे-गुनाह कोई नहीं, गुनाह सबके राज होते हैं, किसी के चुप जाते हैं किसी छप जाते हैं। शहर में हर अलमारी में रोने की जगह मिलती है, अपनी इज्जत भी यहां हंसी मजाक से कर रही हूं। शहर में सबको कहां मिलती है रोने की जगह, अपनी इज्जत भी यहां हंसने हंसाने से राही। मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी कि दिन राह में, दम निकल जाएं अगर तो फख्र की ही बात है। मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी के जिन्की राह में, दम निकल जाए अगर तो फखर की ही बात है। ©BALWANT KAUR "

मैं प्राय: खाली हाथ आया हूँ, कभी ख्वाइश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते। भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आया हूं, कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते। 2 लाइन शायरी - मैं खाली हाथ आया तलब करें तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें दे दूं, मगर ये लोग मेरी आंखों के ख्वाब मांगते हैं। तालाब करें तो मैं अपनी आंखें भी उन्हें दे दू, मगर ये लोग मेरी आंखों के ख्वाब मांगते हैं। विज्ञापन बेगुनाह कोई हरदम हर राज़ होते हैं, किसी के छुप जाते हैं, किसी के छप्पर हो जाते हैं। बे-गुनाह कोई नहीं, गुनाह सबके राज होते हैं, किसी के चुप जाते हैं किसी छप जाते हैं। शहर में हर अलमारी में रोने की जगह मिलती है, अपनी इज्जत भी यहां हंसी मजाक से कर रही हूं। शहर में सबको कहां मिलती है रोने की जगह, अपनी इज्जत भी यहां हंसने हंसाने से राही। मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी कि दिन राह में, दम निकल जाएं अगर तो फख्र की ही बात है। मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी के जिन्की राह में, दम निकल जाए अगर तो फखर की ही बात है। ©BALWANT KAUR

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