बचपन याद आ जाता है। सपनों में देखा गया दर्पण याद आ जाता है। क्या थे वो दिन जब चंद पैसों में ख़ुशी मेलो का आनंद लेना याद आता है। क्या कहें कि कैसी खुशी थी जब घूंघुने, गुंबारे,खिलौने,तथा सीटियां बजाते घर आते थे। सच कहूं यारों तो मले की तरफ देखते ही बचपन याद आ जाता है हां बचपन याद आता है।
©Chandu Danial
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