White प्रीति की हर रीति झूठी और सब संबंध झूठे ,
सात वचनो में लिए जो वो सभी अनुबंध झूठे ,
मन तुम्हारा गर न पाया तो मुझे फिर क्या मिला ,
क्या करूं तुमसे शिकायत क्यों करूं तुमसे गिला ।।
तन हो चाहे मन तुम्हारा प्रीत के बिन यार क्या है?
जब नहीं कर्तव्य समझा फिर भला अधिकार क्या है?
अब समर्पण द्वेष बनकर पूछने हर दिन लगा है ,
एक निष्ठुर देवता से एकतरफा प्यार क्या है?
मन की मूरत टूट करके हो गई फिर से शिला,
क्या करूं तुमसे शिकायत क्यों करूं तुमसे गिला.।।
रस्म की वेदी पे तुमने कर दिया होता इशारा ,
कुछ नहीं जाता हमारा कुछ नहीं खोता तुम्हारा ,
इस अनूठे स्वांग की तुम गर नहीं रचते कहानी ,
मन नहीं दुःखता हमारा मन नहीं रोता तुम्हारा ।
और तृष्णाओं का मन में यूं न आता जलजला ।।
क्या करूं तुमसे शिकायत क्यों तुमसे गिला ।।
उम्र भर है साथ रहना साथ में रहना नहीं है ,
मैं कोई पर्याय चुन लूँ प्रीति है गहना नहीं है ,
तुम नहीं कुछ बोलती पर जानता हूं हर कहानी ,
ये तुम्हारी मांग सूनी ये भरी सिंदूरदानी ।
एक दूजे को निभाने का है जारी सिलसिला,
क्या करूं तुमसे शिकायत क्यों करूं तुमसे गिला ।।
रोहित मिश्र
©Mishra Ji
#sad_shayari