खोलकर अपना सफ़ीना, मैं भँवर में आ चुका हूँ मंज़िलों | हिंदी शायरी

"खोलकर अपना सफ़ीना, मैं भँवर में आ चुका हूँ मंज़िलों रास्ता निहारो, अब सफ़र में आ चुका हूँ ख़ौफ़ हो उनको कि जिनकी उम्र गुजरी साहिलों पर मैं लहर का ही जना था, मैं लहर में आ चुका हूँ मुझको धक्का देने वालों को यही अफ़सोस है मैं सफलता साथ लेकर, फिर में खबर आ चुका हूँ साहिलों पर था तो मैं महरूम था पहचान से जूझ कर लहरों से मैं सबकी नजर में आ चुका हूँ कृष्ण हों जब सारथी अर्जुन भला क्यूँ ख़ौफ़ खाए 'श्याम' को मैं साथ लेकर इस समर में आ चुका हूँ ©Shubham Shyam"

 खोलकर अपना सफ़ीना, मैं भँवर में आ चुका हूँ
मंज़िलों रास्ता निहारो, अब सफ़र में आ चुका हूँ

ख़ौफ़ हो उनको कि जिनकी उम्र गुजरी साहिलों पर
मैं लहर का ही जना था, मैं लहर में आ चुका हूँ

मुझको धक्का देने वालों को यही अफ़सोस है
मैं सफलता साथ लेकर, फिर में खबर आ चुका हूँ

साहिलों पर था तो मैं महरूम था पहचान से
जूझ कर लहरों से मैं सबकी नजर में आ चुका हूँ

कृष्ण हों जब सारथी अर्जुन भला क्यूँ ख़ौफ़ खाए
'श्याम' को मैं साथ लेकर इस समर में आ चुका हूँ

©Shubham Shyam

खोलकर अपना सफ़ीना, मैं भँवर में आ चुका हूँ मंज़िलों रास्ता निहारो, अब सफ़र में आ चुका हूँ ख़ौफ़ हो उनको कि जिनकी उम्र गुजरी साहिलों पर मैं लहर का ही जना था, मैं लहर में आ चुका हूँ मुझको धक्का देने वालों को यही अफ़सोस है मैं सफलता साथ लेकर, फिर में खबर आ चुका हूँ साहिलों पर था तो मैं महरूम था पहचान से जूझ कर लहरों से मैं सबकी नजर में आ चुका हूँ कृष्ण हों जब सारथी अर्जुन भला क्यूँ ख़ौफ़ खाए 'श्याम' को मैं साथ लेकर इस समर में आ चुका हूँ ©Shubham Shyam

#gazal
#nojotohindi

People who shared love close

More like this

Trending Topic