प्रतिदिन चलता रहता है मंथन
कहाँ रुकता है चलायमान मन
इस मन की भी क़ोई थाह नहीं
खत्म होती इसकी कभी चाह नहीं
मन मंदिर, मन ही मधुशाला
मन धवल, मन ही होता काला
मन से बैरी, मन से मित्र
मन बनाता सबके चित्र
मन से जो करे मनन
उसका जीवन हो जाता चमन।
©Kamlesh Kandpal
#Mn