एक थे बुद्धूमलजी। अपने नाम की तरह वे सच में बुद्ध | हिंदी Life Video

"एक थे बुद्धूमलजी। अपने नाम की तरह वे सच में बुद्धू ही थे। साथ में कामचोर भी थे। कामचोर यानी जो काम से मन चुराए। तो एक दिन बुद्धूमलजी की माँ ने उनसे कहा, “बेटा, तू अब बड़ा हो गया है, कुछ कामकाज सीख। जा, घर से बाहर निकलकर देख, सब लोग कितना काम करते हें।' बुद्धमलजी उस समय आलस में बिस्तर में पड़े हुए थे। उबासी लेते हुए वे उठे और घर से निकलकर चल पड़े। वे थोड़ी ही दूर चले होंगे, तभी उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी माई एक पेड़ के नीचे थककर बैठी हुई है। उसके सामने लकड़ियों का एक बड़ा-सा गट्ठर रखा हुआ था। बुद्धूमल ने बूढ़ी माई से पूछा, 'ए माई, कुछ काम मिलेगा क्या ? बूढ़ी माई ने कहा, “अरे भाई, मैं तो खुद बहुत गरीब हूँ। मैं किसी को क्‍या काम दे सकती हूँ! लकडियाँ बेचकर जो पैसे मिलते हैं उससे ही अपना काम चलाती हूँ। आज चलते-चलते बहुत थक गई हूँ।' 'लाओ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ।' बुद्धमल ने कहा। 'तुम बड़े ही भले हो, भैया। अगर तुम यह गट्ठर मेरे घर तक पहुँचा दो तो इसमें से कुछ लकडियाँ में तुम्हें भी दे दूँगी। ' बूढ़ी माई बोली। बुद्धूमल खुश हो गए। उन्होंने गट्ठर सिर पर उठा लिया और चल पड़े। अब इन लकडियों को बेचकर मुझे 20-25 रुपए तो मिल ही जाएँगे। उन रुपयों से मैं कुछ बीज खरीदूँगा। मेरे घर के बाहर जो थोड़ी-सी ज़मीन है, उस पर सब्जियाँ उगाऊँगा। उन सब्जियों को बेचकर जो पैसे मिलेंगे उन्हें थोड़ा-थोड़ा बचाकर थोड़ी और ज़मीन ख़रीद लूँगा। उस पर गेहूँ उगाऊँगा। फिर मुझे और बहुत सारे पैसे मिलेंगे। उन पैसों से एक ट्रैक्टर ख़रीद लूँगा। तब खेत जोतने में आसानी होगी। फूसल को जल्दी से बाज़ार भी पहुँचा सकूँगा। ढेर सारे पैसे और मिल जाएँगे। उनसे एक बढ़िया घर खरीदूँगा। सब लोग कहेंगे कि बुद्धूमल कितना बुद्धिमान है।' बुद्धमल अपने सपने में इतना खो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है, उनका पैर फिसला और वे छपाक से तालाब में गिर गए। साथ ही लकडियों का गट्ठर भी पानी में गिर गया। बूढ़ी माई चिल्लाई, “अरे भैया, यह तुमने क्‍या किया, मेरी लकडियाँ गीली कर दीं, अब मैं क्या बेचूँगी! मेरी पूरे दिन की मेहनत बेकार हो गई। अब इन गीली लकडियों को कौन ख़रीदेगा ?' बुद्धमल पानी से बाहर निकले और बोले, “माई, मुझे माफ़ कर दो। मैं अपने सपने में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है। मेरा तो लाखों का नुकसान हो गया माई!' बुद्धूमल सिर पकड़कर बैठ गए। तब बूढ़ी माई बोली, 'बेटा, दिन में सपने देखना अच्छी बात नहीं है। मेहनत करो और फिर देखो, तुम्हें सब कुछ अपने-आप मिल जाएगा।' वे सोचते जा रहे थे-कोई बात नहीं, पैसे न सही लकडियाँ ही सही। ©Silent Girl001 "

एक थे बुद्धूमलजी। अपने नाम की तरह वे सच में बुद्धू ही थे। साथ में कामचोर भी थे। कामचोर यानी जो काम से मन चुराए। तो एक दिन बुद्धूमलजी की माँ ने उनसे कहा, “बेटा, तू अब बड़ा हो गया है, कुछ कामकाज सीख। जा, घर से बाहर निकलकर देख, सब लोग कितना काम करते हें।' बुद्धमलजी उस समय आलस में बिस्तर में पड़े हुए थे। उबासी लेते हुए वे उठे और घर से निकलकर चल पड़े। वे थोड़ी ही दूर चले होंगे, तभी उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी माई एक पेड़ के नीचे थककर बैठी हुई है। उसके सामने लकड़ियों का एक बड़ा-सा गट्ठर रखा हुआ था। बुद्धूमल ने बूढ़ी माई से पूछा, 'ए माई, कुछ काम मिलेगा क्या ? बूढ़ी माई ने कहा, “अरे भाई, मैं तो खुद बहुत गरीब हूँ। मैं किसी को क्‍या काम दे सकती हूँ! लकडियाँ बेचकर जो पैसे मिलते हैं उससे ही अपना काम चलाती हूँ। आज चलते-चलते बहुत थक गई हूँ।' 'लाओ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ।' बुद्धमल ने कहा। 'तुम बड़े ही भले हो, भैया। अगर तुम यह गट्ठर मेरे घर तक पहुँचा दो तो इसमें से कुछ लकडियाँ में तुम्हें भी दे दूँगी। ' बूढ़ी माई बोली। बुद्धूमल खुश हो गए। उन्होंने गट्ठर सिर पर उठा लिया और चल पड़े। अब इन लकडियों को बेचकर मुझे 20-25 रुपए तो मिल ही जाएँगे। उन रुपयों से मैं कुछ बीज खरीदूँगा। मेरे घर के बाहर जो थोड़ी-सी ज़मीन है, उस पर सब्जियाँ उगाऊँगा। उन सब्जियों को बेचकर जो पैसे मिलेंगे उन्हें थोड़ा-थोड़ा बचाकर थोड़ी और ज़मीन ख़रीद लूँगा। उस पर गेहूँ उगाऊँगा। फिर मुझे और बहुत सारे पैसे मिलेंगे। उन पैसों से एक ट्रैक्टर ख़रीद लूँगा। तब खेत जोतने में आसानी होगी। फूसल को जल्दी से बाज़ार भी पहुँचा सकूँगा। ढेर सारे पैसे और मिल जाएँगे। उनसे एक बढ़िया घर खरीदूँगा। सब लोग कहेंगे कि बुद्धूमल कितना बुद्धिमान है।' बुद्धमल अपने सपने में इतना खो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है, उनका पैर फिसला और वे छपाक से तालाब में गिर गए। साथ ही लकडियों का गट्ठर भी पानी में गिर गया। बूढ़ी माई चिल्लाई, “अरे भैया, यह तुमने क्‍या किया, मेरी लकडियाँ गीली कर दीं, अब मैं क्या बेचूँगी! मेरी पूरे दिन की मेहनत बेकार हो गई। अब इन गीली लकडियों को कौन ख़रीदेगा ?' बुद्धमल पानी से बाहर निकले और बोले, “माई, मुझे माफ़ कर दो। मैं अपने सपने में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है। मेरा तो लाखों का नुकसान हो गया माई!' बुद्धूमल सिर पकड़कर बैठ गए। तब बूढ़ी माई बोली, 'बेटा, दिन में सपने देखना अच्छी बात नहीं है। मेहनत करो और फिर देखो, तुम्हें सब कुछ अपने-आप मिल जाएगा।' वे सोचते जा रहे थे-कोई बात नहीं, पैसे न सही लकडियाँ ही सही। ©Silent Girl001

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