लिए त्रिशूल हाथों में गले   में   सर्प   डाले  हैं

"लिए त्रिशूल हाथों में गले   में   सर्प   डाले  हैं । सुना  है  यार  हमने  भी  यही  वो  डमरु  वाले  हैं ।।१ नज़र अब  कुछ  इधर डालें  लगा  दो अर्ज़  मेरी भी। सुना हमने उसी दर  से  सभी  पाते  निवाले  हैं ।।२ यही    हमको    निकालेंगे   कभी   बेटे  बडे़  होकर । अभी  जिनके  लिए  हमने  यहाँ  छोडे़  निवाले  हैं ।।३ नहीं रोने दिया  उनको  पिया  खुद आँख का पानी । दिखाते आँख अब  वो हैं कि हम  उनके हवाले हैं ।।४ किसी को क्या ख़बर पाला है मैंने कैसे बच्चों को  वहीं बच्चे मेरी पगड़ी पे अब कीचड़ उछाले हैं।।५ यहाँ तुमसे  भला  सुंदर  बताओ और क्या जग में । तुम्हारे नाम पर सजते यहाँ सारे   शिवाले  हैं ।।६ डगर अपनी चला चल तू न कर परवाह मंजिल की । तेरे नज़दीक आते दिख रहे मुझको उजाले हैं । ७ प्रखर भाता  नहीं बर्गर  उन्हें भाता  नहीं पिज्जा । घरों  में  रोटियों   के  जिनके  पड़ते रोज़  लाले  हैं ।।९                        महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 लिए त्रिशूल हाथों में गले   में   सर्प   डाले  हैं ।
सुना  है  यार  हमने  भी  यही  वो  डमरु  वाले  हैं ।।१
नज़र अब  कुछ  इधर डालें  लगा  दो अर्ज़  मेरी भी।
सुना हमने उसी दर  से  सभी  पाते  निवाले  हैं ।।२
यही    हमको    निकालेंगे   कभी   बेटे  बडे़  होकर ।
अभी  जिनके  लिए  हमने  यहाँ  छोडे़  निवाले  हैं ।।३
नहीं रोने दिया  उनको  पिया  खुद आँख का पानी ।
दिखाते आँख अब  वो हैं कि हम  उनके हवाले हैं ।।४
किसी को क्या ख़बर पाला है मैंने कैसे बच्चों को 
वहीं बच्चे मेरी पगड़ी पे अब कीचड़ उछाले हैं।।५
यहाँ तुमसे  भला  सुंदर  बताओ और क्या जग में ।
तुम्हारे नाम पर सजते यहाँ सारे   शिवाले  हैं ।।६
डगर अपनी चला चल तू न कर परवाह मंजिल की ।
तेरे नज़दीक आते दिख रहे मुझको उजाले हैं । ७
प्रखर भाता  नहीं बर्गर  उन्हें भाता  नहीं पिज्जा ।
घरों  में  रोटियों   के  जिनके  पड़ते रोज़  लाले  हैं ।।९

                       महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

लिए त्रिशूल हाथों में गले   में   सर्प   डाले  हैं । सुना  है  यार  हमने  भी  यही  वो  डमरु  वाले  हैं ।।१ नज़र अब  कुछ  इधर डालें  लगा  दो अर्ज़  मेरी भी। सुना हमने उसी दर  से  सभी  पाते  निवाले  हैं ।।२ यही    हमको    निकालेंगे   कभी   बेटे  बडे़  होकर । अभी  जिनके  लिए  हमने  यहाँ  छोडे़  निवाले  हैं ।।३ नहीं रोने दिया  उनको  पिया  खुद आँख का पानी । दिखाते आँख अब  वो हैं कि हम  उनके हवाले हैं ।।४ किसी को क्या ख़बर पाला है मैंने कैसे बच्चों को  वहीं बच्चे मेरी पगड़ी पे अब कीचड़ उछाले हैं।।५ यहाँ तुमसे  भला  सुंदर  बताओ और क्या जग में । तुम्हारे नाम पर सजते यहाँ सारे   शिवाले  हैं ।।६ डगर अपनी चला चल तू न कर परवाह मंजिल की । तेरे नज़दीक आते दिख रहे मुझको उजाले हैं । ७ प्रखर भाता  नहीं बर्गर  उन्हें भाता  नहीं पिज्जा । घरों  में  रोटियों   के  जिनके  पड़ते रोज़  लाले  हैं ।।९                        महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

लिए त्रिशूल हाथों में गले   में   सर्प   डाले  हैं ।

सुना  है  यार  हमने  भी  यही  वो  डमरु  वाले  हैं ।।१


नज़र अब  कुछ  इधर डालें  लगा  दो अर्ज़  मेरी भी।

सुना हमने उसी दर  से  सभी  पाते  निवाले  हैं ।।२

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