*राहगीर*
मस्त अपनी धुन में चला जाता हूॅं
कोई कुछ भी कहे दिल से अब नहीं लगाता हूॅं
कभी गिरता कभी खुद हीं खुद से संभल जाता हूॅं
गैरों में अपनों की खुशियां ढूंढने निकल जाता हूॅं
कोई साथ दे या ना दे फर्क नहीं पड़ता
खुद का होंसला खुद हीं बढ़ा के हूं मैं चलता
कोई नाम जो पूछे मेरा , ख़ामोश शब्दों से बता नही पाता
आखिर कहूॅं भी तो उनसे क्या कहूॅं
यही की मैं एक अनजान राहगीर हूॅं
©Abhishek jha
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