ईद चला गया पर दीदार -ए -चांद न हुआ। खफा़ होकर के क | हिंदी लव

"ईद चला गया पर दीदार -ए -चांद न हुआ। खफा़ होकर के कहीं, बादलों में खो गया। ख़ता कोई हमसे हुई? या रुख़सत वो खुद हो गया। हुआ नहीं करती थी कभी रातें बिना उनके, जिंदगानी में अंधेरी, अधूरी दास्ताॅं रह गया। फासले कुछ इस तरह कायम हुए दरमियां मैं ठहरी जमीं, वो शून्य आसमां हो गया। ©tameshwari sinha "

 ईद चला गया पर दीदार -ए -चांद न हुआ।
खफा़ होकर के कहीं, बादलों में खो गया।
ख़ता कोई हमसे हुई? या रुख़सत वो खुद हो गया।

हुआ नहीं करती थी कभी रातें बिना उनके,
जिंदगानी में अंधेरी, अधूरी दास्ताॅं रह गया।
फासले कुछ इस तरह कायम हुए दरमियां
मैं ठहरी जमीं, वो शून्य आसमां हो गया।

©tameshwari sinha

ईद चला गया पर दीदार -ए -चांद न हुआ। खफा़ होकर के कहीं, बादलों में खो गया। ख़ता कोई हमसे हुई? या रुख़सत वो खुद हो गया। हुआ नहीं करती थी कभी रातें बिना उनके, जिंदगानी में अंधेरी, अधूरी दास्ताॅं रह गया। फासले कुछ इस तरह कायम हुए दरमियां मैं ठहरी जमीं, वो शून्य आसमां हो गया। ©tameshwari sinha

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