लग जा गले कि फिर हसीं रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो ना हो...
हैं
तो ये गाने की दो पंक्तियां , पर ना जाने कितने ख्वाईशों के दरीचे खोलती हैं, ये वो लाइनें , वो शब्द है जो शायद कहना चाहता था मैं तुमसे , या फिर सुनना चाहता था। ऐसे ही न जाने कितनी बातें , कितने अरमान थे तुम्हारे साथ मेरे ज़हन में , जिसे पूरा करना था,
जीना था तुम्हारे साथ जी भर के , ये समय खत्म होने से पहले पर ये हो नही सका। सोचता हूं हम दोनों में से कोई भी थोड़ी सी हिम्मत कर लेता , और बस गले लगा लेता दूसरे को चुपचाप बिना कुछ कहे , बिना कुछ सोचे , रो लेते हम उसी तरह साथ में , अपनी हर गलतियों पर , अपनी दूरियों पर तो शायद आधी से ज्यादा
गलतफहमियां वहीं खत्म हो जाती हमारी। अगर नहीं भी होती तो कम से कम वो पल तो संजो लेते हम अपने यादों के बक्सों में , वो पल जो सही ग़लत , सच झूठ सबसे परे होता , बस हम होते और वक्त भी रूका होता ।खैर अब वो समय भी जा चुका है और शायद हम दोनों भी आगे बढ़ चुके हैं , पर ये गाना ये लाइनें आज कह ही देता हूं मैं ,अगर तुम कभी भी सुन सको , समझ सको तो समझ लेना ...
पास आइये कि हम नहीं आयेंगे बार बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें जा़र ज़ार...
©gokul
लग जा गले कि फिर हसीं रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो ना हो...
हैं
तो ये गाने की दो पंक्तियां , पर ना जाने कितने ख्वाईशों के दरीचे खोलती हैं, ये वो लाइनें , वो शब्द है जो शायद कहना चाहता था मैं तुमसे , या फिर सुनना चाहता था। ऐसे ही न जाने कितनी बातें , कितने अरमान थे तुम्हारे साथ मेरे ज़हन में , जिसे पूरा करना था,
जीना था तुम्हारे साथ जी भर के , ये समय खत्म होने से पहले पर ये हो नही सका। सोचता हूं हम दोनों में से कोई भी थोड़ी सी हिम्मत कर लेता , और बस गले लगा लेता दूसरे को चुपचाप बिना कुछ कहे , बिना कुछ सोचे , रो लेते हम उसी तरह साथ में , अपनी हर गलतियों पर , अपनी दूरियों पर तो शायद आधी से ज्यादा