ज़ख्म देकर वो नमक लगाने आये है, मोहब्बत को बे-हया स
"ज़ख्म देकर वो नमक लगाने आये है,
मोहब्बत को बे-हया समझकर आये है।
और गुफ़्तगू करने से बाते भुलायी नही जाती है,
दिल तब भी रोता है मगर अपनी गलती पर होठ मुस्करा जाते है।"
ज़ख्म देकर वो नमक लगाने आये है,
मोहब्बत को बे-हया समझकर आये है।
और गुफ़्तगू करने से बाते भुलायी नही जाती है,
दिल तब भी रोता है मगर अपनी गलती पर होठ मुस्करा जाते है।