White प्यारी थी घर की आन वान शान जिंदगी बनी शमसान | हिंदी कविता

"White प्यारी थी घर की आन वान शान जिंदगी बनी शमसान एक लम्बी तन्हाई खुशी न रास आई चिंता न करो कहकर खुद चिता ओढ़ गए मतलबी दुनिया में अकेला छोड़ गए शायद मिलेंगी खुशियाँ घर में फिर खनकी चूड़ियाँ पर कर्मों से कौन बचाता है इतिहास खुद को दोहराता है जीवन से फिर शर्मसार हूँ मैं अभागा गुनहगार हूँ धन की चाह में रिश्तों को भूल गए खुशी देख सीने पर सांप लोट गए कमियां तो दोनों में थी एक की उछाली, एक की दबा ली तुम तो माँ थी एक को कहा तो तड़प गई दूजे को कहा तो मुकर गई भेदभाव सह न सका रोये बिन रह न सका खुद को तो संभाल पाया बिखरे रिश्ते न संभाल पाया जीवन से फिर शर्मसार हूँ मैं अभागा सबका गुनहगार हूँ ©कवि मनोज कुमार मंजू"

 White प्यारी थी घर की आन वान शान 
जिंदगी बनी शमसान
एक लम्बी तन्हाई 
खुशी न रास आई 
चिंता न करो कहकर 
खुद चिता ओढ़ गए
मतलबी दुनिया में अकेला छोड़ गए 
शायद मिलेंगी खुशियाँ 
घर में फिर खनकी चूड़ियाँ
पर कर्मों से कौन बचाता है 
इतिहास खुद को दोहराता है 
जीवन से फिर शर्मसार हूँ 
मैं अभागा गुनहगार हूँ
धन की चाह में रिश्तों को भूल गए 
खुशी देख सीने पर सांप लोट गए 
कमियां तो दोनों में थी 
एक की उछाली, एक की दबा ली 
तुम तो माँ थी 
एक को कहा तो तड़प गई
दूजे को कहा तो मुकर गई 
भेदभाव सह न सका 
रोये बिन रह न सका 
खुद को तो संभाल पाया
बिखरे रिश्ते न संभाल पाया 
जीवन से फिर शर्मसार हूँ 
मैं अभागा सबका गुनहगार हूँ

©कवि मनोज कुमार मंजू

White प्यारी थी घर की आन वान शान जिंदगी बनी शमसान एक लम्बी तन्हाई खुशी न रास आई चिंता न करो कहकर खुद चिता ओढ़ गए मतलबी दुनिया में अकेला छोड़ गए शायद मिलेंगी खुशियाँ घर में फिर खनकी चूड़ियाँ पर कर्मों से कौन बचाता है इतिहास खुद को दोहराता है जीवन से फिर शर्मसार हूँ मैं अभागा गुनहगार हूँ धन की चाह में रिश्तों को भूल गए खुशी देख सीने पर सांप लोट गए कमियां तो दोनों में थी एक की उछाली, एक की दबा ली तुम तो माँ थी एक को कहा तो तड़प गई दूजे को कहा तो मुकर गई भेदभाव सह न सका रोये बिन रह न सका खुद को तो संभाल पाया बिखरे रिश्ते न संभाल पाया जीवन से फिर शर्मसार हूँ मैं अभागा सबका गुनहगार हूँ ©कवि मनोज कुमार मंजू

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