*दोस्त*
कुछ बनें ,,,,
फिर कभी नहीं बनें,,,
बचपन में
कितनी ही बार लडते थें,
झगडतें थे।
फिर उनसे कट्टी-बट्टी का
खेल चलता था।
तू उससे बात मत करना
वरना मैं तुझसे भी कट्टी हो
जाउंगा।
वो मासूमियत से भरे दिन,
और वो मासूम- सा दोस्ताना।
कभी मेड़म को चुगली करना।
फिर भी उसी की तरफ देखना।
कभी मम्मी को लड़ाई की बात कहना ।
फिर उसी के साथ खेलना।
बस! वो जो *अंगुठे* से
अपनें दाँतों से कट्टी करना।
फिर उसी के पास वाली
दो *उंगलियों* से दोस्ती हो जाना।
बस! जिंदगी में उसी
*दोस्ती* के मायनें थे।
बाद में तो सब
*बेबुनियाद* थे।
©Geeta Sharma pranay
#Friendship