*दोस्त* कुछ बनें ,,,, फिर कभी नहीं बनें,,, बचप | हिंदी कविता Video

"*दोस्त* कुछ बनें ,,,, फिर कभी नहीं बनें,,, बचपन में कितनी ही बार लडते थें, झगडतें थे। फिर उनसे कट्टी-बट्टी का खेल चलता था। तू उससे बात मत करना वरना मैं तुझसे भी कट्टी हो जाउंगा। वो मासूमियत से भरे दिन, और वो मासूम- सा दोस्ताना। कभी मेड़म को चुगली करना। फिर भी उसी की तरफ देखना। कभी मम्मी को लड़ाई की बात कहना । फिर उसी के साथ खेलना। बस! वो जो *अंगुठे* से अपनें दाँतों से कट्टी करना। फिर उसी के पास वाली दो *उंगलियों* से दोस्ती हो जाना। बस! जिंदगी में उसी *दोस्ती* के मायनें थे। बाद में तो सब *बेबुनियाद* थे। ©Geeta Sharma pranay "

*दोस्त* कुछ बनें ,,,, फिर कभी नहीं बनें,,, बचपन में कितनी ही बार लडते थें, झगडतें थे। फिर उनसे कट्टी-बट्टी का खेल चलता था। तू उससे बात मत करना वरना मैं तुझसे भी कट्टी हो जाउंगा। वो मासूमियत से भरे दिन, और वो मासूम- सा दोस्ताना। कभी मेड़म को चुगली करना। फिर भी उसी की तरफ देखना। कभी मम्मी को लड़ाई की बात कहना । फिर उसी के साथ खेलना। बस! वो जो *अंगुठे* से अपनें दाँतों से कट्टी करना। फिर उसी के पास वाली दो *उंगलियों* से दोस्ती हो जाना। बस! जिंदगी में उसी *दोस्ती* के मायनें थे। बाद में तो सब *बेबुनियाद* थे। ©Geeta Sharma pranay

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