White कोई अर्थ नहीं रहता
व्यर्थ लगता है जीवन
जब संघर्षों से जब टूट चुका होता अन्तर्मन,
तब कोई अर्थ नहीं रहता
आनंद शब्द भी तब सूखे समुंद्र सा प्रतीत होता है।
बार - बार , न जाने कई बार ,
ठोकर मारकर जब अपने
हमदर्दी का स्वांग रचाकर
हाल - चाल पूछते हैं ,
तब कोई अर्थ नहीं रहता ।
उचित समय पर सहारा देनेवाले ही
गिरगिट- सा रंग बदल लेते हैं,
तब उन संबंधों का कोई अर्थ नहीं रहता ।
सबके होने पर भी ,
जब कोई अकेलापन महसूस करें
तब उन लोगों का उसके लिए होना ,
कोई अर्थ नहीं रहता।
©Rakesh Kumar Das
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