White उलझे तारों सी है ये ज़िंदगी
और कभी सपाट सड़क सी
खूब चमक जाती है
कभी इतनी ऊंची कि
पकड़ में ही ना आए
तो कभी रोम–रोम में
भीतर तक समा जाती है
ज़िंदगी के इस खेल में मैं
स्वयं को उलझा हुआ पाता हूं
कोशिश तो बहुत करता हूं कि
ज़िंदगी से हर बार जीत जाऊं
मगर हर बार,,,
ज़िंदगी से हार जाता हूं
©परिंदा
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