साथ स्वयं से छूट गया उनका हमें छोड़ते-छोड़ते
थक चुका हूँ अब लिबास यादों के ओढ़ते-ओढ़ते
मत संभालना उदासीन लोगों को हर बार
तुम खुद टूट गये हो 'अनुभव' हाल गैरों के जोड़ते-जोड़ते
तुम आँसू मान बैठे आँख को अपना घर
बेघर बह रहे हो आजकल रास्ते मोड़ते-मोड़ते
चुपचाप खुशी से महका रहे थे गुल सारा बगीचा
नोंचकर गुज़र गये हुस्नवाले पत्ती एक-एक तोड़ते-तोड़ते
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©Mrityunjay Anubhav
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