महफ़िल का दस्तूर है,
दर्द सुनाने वाला ही यहाँ मशहूर है..!
सुनने वाला भी करे दर्द पर वाह वाह,
हर शख्स खुद में मगरूर है..!
किसी को चढ़ा है नशा आशिकी का,
किसी को ग़म भरपूर है..!
अंदाज़-ऐ-बयाँ सबका अलग,
सबका अपना अपना सुरूर है..!
कोई शायरी करे कोई सुनाये कविता,
कोई हास्य में प्रचुर है..!
गूँजे तालियों की गर्जना से महफ़िल और,
क्या बात क्या बात का चारों ओर शोर है..!
©SHIVA KANT(Shayar)
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