मजदूर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु . अनपढ़ भी ह

"मजदूर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु . अनपढ़ भी हु तभी चन्द पैसों की लिये दूसरे शहर में दिखता हु . झूठी दलिल सुन के नेताओं की अब खुद अपना संघर्ष लिखता हु . मजदुर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु . सपनो के नाम पे आँखो में सिर्फ दो वक़्त की रोटी है . फटे हुए कपड़ो को सफारी सूट कहता हु और दूरिया बढ़ा कर अपने घर परिवार से उनको खिलाने के लिए नाजाने कितने रात भूखे पैट सोता हु . मजदुर हु मजदूरी का हुनर साथ रखता हु|"

 मजदूर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु .
अनपढ़ भी हु तभी चन्द पैसों की लिये दूसरे शहर  में दिखता हु .
झूठी दलिल सुन के नेताओं की अब खुद अपना संघर्ष लिखता हु .
मजदुर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु .
सपनो के  नाम पे आँखो में सिर्फ दो वक़्त की रोटी है .
फटे हुए कपड़ो को सफारी सूट कहता हु और दूरिया बढ़ा कर अपने घर परिवार से उनको खिलाने के लिए नाजाने कितने रात भूखे पैट सोता हु .
मजदुर हु मजदूरी का हुनर साथ रखता हु|

मजदूर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु . अनपढ़ भी हु तभी चन्द पैसों की लिये दूसरे शहर में दिखता हु . झूठी दलिल सुन के नेताओं की अब खुद अपना संघर्ष लिखता हु . मजदुर हु में मजदूरी क हुनर साथ रखता हु . सपनो के नाम पे आँखो में सिर्फ दो वक़्त की रोटी है . फटे हुए कपड़ो को सफारी सूट कहता हु और दूरिया बढ़ा कर अपने घर परिवार से उनको खिलाने के लिए नाजाने कितने रात भूखे पैट सोता हु . मजदुर हु मजदूरी का हुनर साथ रखता हु|

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