सोचता हूं
अब क्या लिखूं तेरी याद में
बहुत दूर चला आया हूं
सूखे गुलाब की पत्तियों
की तरह
शायद मैं भी आहिस्ता आहिस्ता
गिर रहा हूं
आपकी किताबों से
गिरा है जमीं पर इक सूखा गुलाब
जिनपर बना हुआ इक
पयाम तेरा
सूखी हुई सख्त पंखुड़ियां
जिसकी
बता रही है सब हाल मेरा
मोहब्बत का सबब पूछा था
मैं क्या कहता
मेरी आंखों के आईने में कैद
कहानी अधूरी थी
प्यार के बिना
कविता, ग़ज़ल और शायरी में
क्या अंतर रहा अब ?
शायद
कई बातें ऐसी होती हैं
जिनमे प्रेम को शब्दों से सज़ा देना
अनिवार्य बन जाता हैं
©gappuukuchchhi
#lonely ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ ⌲
ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
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