किताबें कैद अलमारी में
बिखरा कमरे में सन्नाटा
मैं चीख भी नहीं पाया देख
किसी ने भी दर्द नहीं बांटा
कहां रस्ता खोजता रहता
अकेलापन कहां तक जाता
मैं तो निकल ही जाऊँगा
इसमें होगा बस तेरा घाटा
मुँह दबा रखा था इल्ज़ामों ने
मैं अपनी धुन कैसे बजाता
अब खुली हवा में सांस ली है
मेरे किरदार को मैं नहीं छुपाता
©parveen mati
किताबें कैद अलमारी में
बिखरा कमरे में सन्नाटा
मैं चीख भी नहीं पाया देख
किसी ने भी दर्द नहीं बांटा
कहां रस्ता खोजता रहता
अकेलापन कहां तक जाता
मैं तो निकल ही जाऊँगा