कुछ बंदिशों को तोड़कर
सीमाओं को भी लांघकर
पहुंची यहां... पहुंचना जहां
लगता कहां... आसान यहां।
हर पल लगा मुश्किल यहां
वो दिन कहां..वो दिन यहां
हारी भी और.. टूटी भी थी
जुड़ना कहां.. आसान यहां
लड़ती रही... डटती रही
जीती कहां... थमती कहां
ले हौंसला ..एक बूंद सा
पानी सी बन बहती यहां
अनजान सी... बनती गई
पर आज हूं...सुलझी हुई।।
कुछ बंदिशों को तोड़कर
सीमाओं को भी लांघकर
पहुंची यहां... पहुंचना जहां
लगता कहां... आसान यहां।
©Jyoti Dhariyal
#AKSAR