तड़पता भी है दिल तो कभी बहकता भी है दिल तुझ को क्य | हिंदी Shayari

"तड़पता भी है दिल तो कभी बहकता भी है दिल तुझ को क्यों खुदा समझता है ये दिल महक महक उठती हैं साँसे धड़क उठता है दिल समेटना चाहे तुझे अपनी बाहों में क्या अजीब पागल सा है दिल!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha"

 तड़पता भी है दिल
तो कभी बहकता भी है दिल
तुझ को क्यों
खुदा समझता है ये दिल
महक महक उठती हैं साँसे
धड़क उठता है दिल
समेटना चाहे तुझे अपनी बाहों में
क्या अजीब पागल सा है दिल!!!!

©हिमांशु Kulshreshtha

तड़पता भी है दिल तो कभी बहकता भी है दिल तुझ को क्यों खुदा समझता है ये दिल महक महक उठती हैं साँसे धड़क उठता है दिल समेटना चाहे तुझे अपनी बाहों में क्या अजीब पागल सा है दिल!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha

ये दिल..

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