कुछ अलग ही दास्तां बन गई है जिंदगी की.. लोग घर की | हिंदी शायरी

"कुछ अलग ही दास्तां बन गई है जिंदगी की.. लोग घर की जिम्मेदारी साथ लेकर चलते हैं ..मैं मकान लेकर चलता हूं ..तन्हाई के दरमियान भी एक हसीन शाम लेकर चलता हूं.. माना कि अकेला हूं तो क्या हुआ... आने वाले कल का मुकाम लेकर चलता हूं ©Lalit Gunja"

 कुछ अलग ही दास्तां बन गई है जिंदगी की.. लोग घर की जिम्मेदारी साथ लेकर चलते हैं ..मैं मकान लेकर चलता हूं ..तन्हाई के दरमियान भी एक हसीन शाम लेकर चलता हूं.. माना कि अकेला हूं तो क्या हुआ... आने वाले कल का मुकाम लेकर चलता हूं

©Lalit Gunja

कुछ अलग ही दास्तां बन गई है जिंदगी की.. लोग घर की जिम्मेदारी साथ लेकर चलते हैं ..मैं मकान लेकर चलता हूं ..तन्हाई के दरमियान भी एक हसीन शाम लेकर चलता हूं.. माना कि अकेला हूं तो क्या हुआ... आने वाले कल का मुकाम लेकर चलता हूं ©Lalit Gunja

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