White सफ़र
जिंदगी के सफ़र में
हम साथ चले थे
जिस्म व रूह से
तुम्हें बन्धन भाता
मुझे मेरी आजादी।
तुम जोड़ते धागे मोह के
मैं हर शीरा छोड़ती जाती।
तुम घूमते मजलिसों में
मैं वीराने की रही साथी।
शुरुआत से अंत तक
तुम्हारे लिए मैं प्राण थी
तुम मेरे लिए थे समाधि।
और अंत में तुम और मैं
विलीन हुए पंचतत्व में।
तुम्हें अग्नि ने मिट्टी दी
मुझे अग्नि पंख लगा दी।
©अलका मिश्रा
©alka mishra
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