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दर्द से फिर बिखर रहा हूँ मै
फिर तुझे याद कर रहा हूँ मै
अब सही जाये ना जुदाई ये
हिज्र-ऐ-गम से मर रहा हूँ मै
रो रही रातें भी सदा दे कर
सन्ग उनके बिफर रहा हूँ मैं
ऐ कजा तू खफा न हो हमसे
राह तेरी गुज़र रहा हूँ मै
बुझ चुके सब शरारे यादो के
फिरभी येआहें भर रहा हूँ में
हिर्स- ऐ- जर में दर बदर हुए
राहें मंजिल मगर रहा हूँ में
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
23/3/2017
©laxman dawani
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