कितना हसीन आलिंगन था
ओस की उस नन्हीं बूंद ने
जब गुलाब की पंखुड़ी
को छुआ था
ठंडी पवन ने भी तब
उसको स्पर्श किया था
सहम गई थी वो.....
पंखुड़ी से चिपक गई थी वो
सूरज की तपिश से पिघल
रही थी शायद अंतिम सांस ले
रही थी वो
कुछ क्षण ही सही ............
क्षणभंगुर जीवन को
कितनी हिम्मत से जी गई थी
नन्ही सी ओस की बूंद थी वो!!
©Lalit Saxena
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